बना दे चितेरे: अज्ञेय

बना दे चितेरे, मेरे लिए एक चित्र बना दे। पहले सागर आँक : विस्तीर्ण प्रगाढ़ नीला, ऊपर हलचल से भरा, पवन के थपेड़ों से आहत, शत-शत तरंगों से उद्वेलित, फेनोर्मियों से टूटा हुआ, किन्तु प्रत्येक टूटन में अपार शोभा लिये हुए, चंचल उत्कृष्ट, -जैसे जीवन। हाँ, पहले सागर आँक : नीचे अगाध, अथाह, असंख्य दबावों, तनावों, खींचों और मरोड़ों को अपनी द्रव एकरूपता में समेटे हुए, असंख्य गतियों और प्रवाहों को अपने अखण्ड स्थैर्य में समाहित किये हुए स्वायत्त, अचंचल -जैसे जीवन.... सागर आँक कर फिर आँक एक उछली हुई मछली : ऊपर अधर में जहाँ ऊपर भी अगाध नीलिमा है तरंगोर्मियाँ हैं, हलचल और टूटन है, द्रव है, दबाव है और उसे घेरे हुए वह अविकल सूक्ष्मता है जिस में सब आन्दोलन स्थिर और समाहित होते हैं; ऊपर अधर में हवा का एक बुलबुला-भर पीने को उछली हुई मछली जिसकी मरोड़ी हुई देह-वल्ली में उसकी जिजीविषा की उत्कट आतुरता मुखर है। जैसे तडिल्लता में दो बादलों के बीच के खिंचाव सब कौंध जाते हैं- वज्र अनजाने, अप्रसूत, असन्धीत सब गल जाते हैं। उस प्राणों का एक बुलबुला-भर पी लेने को- उस अनन्त नीलिमा पर छाये रहते ही जि...