समलैंगिकता : जीववैज्ञानिक और हारमोन विसंगति

वर्तमान समय में समलैंगिकता को लेकर भारत में एक व्यापक विमर्श जारी है। जहाँ समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की बात चल रही है वहीं भारतीय न्याय व्यवस्था का भी इस विशेष जोर है। ऐसे समय में हमें सच्चिदानन्द जोशी जी की कहानी पुत्रकामेष्ठी के पाठ की आवश्यकता के साथ- साथ उस संवेदन को समझना होगा जो इस कहानी में है। विपरीत लिंगी के प्रति आकर्षण प्राकृतिक हे, लेकिन कभी -कभी हमारे जीव वैज्ञानिक संरचना के विपरीत हमारा हार्मोन्स सक्रिय हो जाता है ऐसे में समलिंगी के प्रति जुडाव हमारे व्यक्तित्व में आ जाता है। आज के समय में हमें यह विचार करना होगा कि  इस समस्या के मूल में वो कौन से कारक हैं, जिनके कारण इस तरह की विसंगति होती है। हमारे शरीर में शारीरिक बनावट के साथ ही साथ बहुत से कारक होते हैं, जिनके प्रभाव में हमारा व्यक्तित्व निर्मित और विकसित होता है। हमारे शरीर में अनेक प्रकार के हार्मोन्स पाये जाते हैं और वो हार्मोन्स ही सक्रिय होकर हमारी जीववैज्ञानिक संरचना को मुकम्मल बनाते हैं। कभी- कभी हार्मोन्ल असन्तुलन के कारण हम अपनी जैविक संरचना के विपरीत लक्षणों से युक्त हो जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप हमारे भीतर समलैंगिकता के लक्षण उत्पन्न होते हैं। 
वर्तमान समय में भारतीय समाज और न्याय व्यवस्था में इस विषय पर विमर्श चल रहा है। भारतीय संस्कृति में उस आयाम को स्थापित करने की चेष्टा की जा रही है जो प्राकृतिक नियमों के सर्वथा प्रतिकूल है। आखिर आज की मानव जाति प्रकृति सेइतना खिलाफत पर क्यूँ कर रही है, यह समझ से परे है। 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व