कहत कविता: डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव 'नैतिक', चेन्नई
कविता बन जाती है
जब मन में उठती हैं लहरें
और बाढ़ आँख में आती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
ये शब्द नहीं हैं मोती हैं
दुख के सागर के सीपी के
कवि ने तो कविता रची मगर
आँसू का अमृत पी-पी के
मन से पढ़कर समझो इसको
यह अद्भुत पाठ पढ़ाती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
जब दौर बुढ़ापे का आए
और डंसने लगे अकेलापन
ये भाई-बहन, बेटे-बेटी
भी बन जाएँ जानी-दुश्मन
जब खून के रिश्तों में दौलत
खूनी दीवार उठाती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
जब महल और झोपड़पट्टी
की खाई बढ़ती ही जाए
कोई फेंके हर दिन मालपुआ
कोई कचरे से रोटी खाए
जब डायन बनकर भूखमरी
निर्धन का पेट जलाती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
जब-जब दहेज के चक्कर में
बहुओं को जलाया जाता है
जब-जब किसान को साहुकार
हर दिन आकर धमकाता है
कर्ज़ा अदायगी की चिंता
जब फ़ाँसी पर लटकाती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
जब अहं के चंगुल में फंसकर
हम स्वयं में ही खो जाते हैं
जब स्वार्थ के होकर वशीभूत
हम भूल वयम् को जाते हैं
जब मृग-तृष्णा जैसी इच्छा
हमको दर-दर भटकाती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
जब जाति-धर्म और मज़हब के
दंगे फैलाए जाते हैं
गीता-कुरान, मंदिर-मस्ज़िद
जब आपस में टकराते हैं
मतलबी सियासत जब 'नैतिक'
जमकर दंगे फैलाती है
तब कोई कवि जन्म लेता
कोई कविता बन जाती है
डॉ. सतीश कुमार श्रीवास्तव 'नैतिक', चेन्नई
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