आखिर क्यों : सारिका साहू

 


आखिर क्यों ?

कितनी खुश होकर आज नया सपना देखा,

नई राह  की मंजिल को पास आते देखा, 

कदम ज्यों ही बढ़ाए आगे, टूट कर रह गई,

आख़िर क्यों? मुझे पिछे धकेल दिया जाता।।


अब तो कोई लिंग भेद नहीं किया जाता,

नर नारी को समान अधिकार दिया जाता ,

यह अधिकार का ज्यों ही लाभ उठाती, 

आख़िर क्यों? मुझे पिछे हटा दिया जाता।।


समाज में जिम्मेदारियों में समानता होगी,

हर वर्ग में पूर्ण रूपेण सदभावना होगी,

लेने जो निकली अपने मौलिक अधिकार ,

आख़िर क्यों ? मुझे उनसे वंचित किया जाता ।।


क़दम दर कदम साथ साथ चलते जाएंगे 

हर बहु बेटी को  स्वावलंबी बनाएंगे 

जो स्वयं  का  सामर्थ्य  दिखाने  चली

आख़िर क्यों ? मेरी अस्मिता  पर प्रश्न किया जाता।।


समाज में रहकर भी, सामाजिक न्याय नहीं मिलता 

अधिकारों को त्याग कर भी सम्मान नहीं मिलता 

संघर्ष ही करती रही, ख़ुद से यही कहती रही

आख़िर क्यों ? मेरे वजूद को ऐसे मिटाया जाता।।

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

मूट कोर्ट अर्थ एवं महत्व

सूर्यकान्त त्रिपाठी "निराला": काव्यगत विशेषताएं

विधि पाठ्यक्रम में विधिक भाषा हिन्दी की आवश्यकता और महत्व