ययावरी

आज फिर से गब्बर शान्त और उदास बैठा अपने उन दिनों के स्मृतियों के जंगल में खोया हुआ था। ना जाने आज क्यूँ आज वह इतना बेचैन था उस जंगल में खो जाने के लिए। अचानक से बगल में रखे मोबाइल की ध्वनि से उसकी तन्द्रा टूटी और उसने देखा और फिर मन में जम आये उस जंगल में खो गया। आज उसके चारो ओर सुख-सुबिधाओं का अम्बार लगा हुआ है लेकिन जो सुख उस परम अभाव उस जंगल में उसे मिलता था वह आंखों से बहुत दूर निकल गया है या कहें कि समाज की प्रतिबद्धता और रुढियों ने छीन लिया था। आज भी वह स्वयं को विखेरना चाह रहा है। अचानक से छत पर चल रहे फैन ने मानो यह संदेश दिया, बिना भावनाओं के चलना हमारी नियति है। तभी फिर स्मार्ट फोन बज उठा और मशीनों सा इंसान उदास और भारी मन से चल दिया। चलना ही यायावरी नियति।
(यायावर)

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