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प्रयोगवादी कवि अज्ञेय

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 अज्ञेय और उनका रचना संसार ना जाने कितना नयापन अपने भीतर समेटे हुए है , भाव और शिल्प के स्तर पर जो कुछ नयापन आधुनिक हिन्दी साहित्य में देखने को मिलाता है उसका उत्स अज्ञेय के रचना लोक में हम देख सकते हैं . प्रयोगवाद के प्रवर्तक के रूप में अज्ञेय का महत्व सर्व विदित है ,लेकिन उनकी कविताओं में एक खास चेतना देखने को मिलाती है . रचना के विषय वस्तु से लेकर शिल्प और दर्शन सभी स्तरों पर अभिनव दृष्टि अज्ञेय को एक विशिष्ट कवि एवं शिल्पी के रूप में प्रतिष्ठित करती है . उनकी कविता कलगी बाजरे की  की निम्नलिखित पंक्तियाँ  उनके भावबोध की परिचायक हैं - अगर मैं तुम को ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिका अब नहीं कहता, या शरद के भोर की नीहार – न्हायी कुंई, टटकी कली चम्पे की, वगैरह, तो नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है या कि मेरा प्यार मैला है।   बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गये हैं। देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच।   कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है। उपरोक्त पंक्तियों में लोक में प्रचलित प्रतिमानों का प्रयोग करके अपनी लोक प्रखर  चेतना को जीवन्त किया है। बासन ,कलगी ,बाजरा टटकी ,कली

कहानी का पाठ विश्लेषण

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     कहानी लिखना और पढ़ना दोनों कला है , कथा साहित्य के संदर्भ में लेखन के साथ साथ पठान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है . इस विडियो के माध्यम से कहानी के पाठ और उसके विश्लेषण के बारे में चर्चा की गयी है . कहानी के पाठन में कहानी की विषय -वस्तु , शीर्षक , संवाद , पात्र योजना के साथ-साथ भाषा शैली और सामाजिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है . विषय- वस्तु के अनुरूप शीर्षक का चयन करना चाहिए . शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि वह हमें कहानी पढने के लिए प्रेरित करे और कथा से परिचित कराये .     विषय-वस्तु और शीर्षक के बाद कहानी के पात्र और संवाद अत्यंत महत्वपूर्ण हैं . संवाद कहानी के सम्प्रेषण और पाठन को प्रभावी बनाते हैं .

बाणभट्ट की आत्मकथाः भाषा एवं ऐतिहासिकता

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 बाणभट्ट की आत्मकथाः भाषिक प्रयोग की नव्यता प्राचीन भारतीय  समाज एवं संस्कृति को आधुनिक युगानुरूप व्याख्ययित करने वालों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य को बहुविध समृद्ध किया। निबन्ध, उपन्यास इतिहास लेखन, समीक्षात्मक लेखन के साथ-साथ हिन्दी भाषा को भी आपने समृद्ध किया। द्विवेदी जी भारतीय संस्कृति की विषाल परम्परा को अपने साहित्य के माध्यम से वर्तमान संन्दर्भों में प्रस्तुत कर भारतीय समाज को तेजोदीप्त करने का कार्य किया। भारतीय संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की उदाक्तता सदियों से अपनी उदार रही है। इसी उदारता और ग्रहणषीलता के परिणाम स्वरूप भारतीय संस्कृति विविधताधर्मी होती गयी है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी साहित्य की विषय वस्तु के रूप में भारत की विषाल सांस्कृतिक परम्परा और इतिहास को अपनाया। आपके निबन्धों और उपन्यासों में भारतीयता जीवन्त हो उठी है। आप के उपन्यास आधुनिक युग में जीवन की व्यापकता को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से हिन्दी उपन्यास साहित्य में विषेष महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक, ऐतिहासिक, मनोवैज्ञानिक और आ

कहानी कला

       कहानी लेखन और कहानी का वाचन दोनों महत्वपूर्ण है . हम समाज में रहते हुए विविध मनःस्थितियों से गुजरते हैं , इन सबका प्रभाव हमारे मन के साथ साथ हमारे जीवन पर भी पड़ता है . अपनी विविध मनोदशाओं को कुछ लोग शब्दों में पिरो कर कविता ,कहानी , उपन्यास और अन्य विधाओं के माध्यम से लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं , कुछ लोग इस कला में बहुत ही कुशल होते हैं तो कुछ लोग उन्हीं भावों को अभिव्यक्त कर सकने में सक्षम नहीं होते .      आइये हम जानते हैं कि वो कौन से तत्व हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए हमें लेखन कि दिशा में आगे बढ़ सकते हैं - 1- अपने आस-पास के समाज को हमें बहुत ही ध्यान से देखने और जानने की कोशिश करनी चाहिए .  2- प्रसिद्ध कहानियों का अध्यनन एवं उसके रचनाकार के जीवन के बारे में हमें जानना चाहिए . 3- रचनाकारों का संस्मरण और उनकी जीवनी का गहनता से अध्ययन करना चाहिए .  4- भाषा के प्रति उदार दृष्टि रखते हुए ज्यादे से ज्यादे  भाषा का ज्ञान रखना चाहिए . 5- सहज भाषा और भाव हमरे मन में हमेशा होने चाहिए और लोगों से मिलकर उनकी जीवन परिस्थितयों को जानने की चेष्टा करनी चाहिए . 6- रचना प्रक्रिया का व

यथार्थ का नया दौर और चुनौतियाँ

कथा साहित्य अपने आरम्भ से मध्यगत रुप में सामाजिक यथार्थ चित्रण से जुड़ा हुआ है। प्रायः हर साहित्य में तिलस्मी, ऐय्यारी, रहस्य और चमत्कार प्रधान किस्सो से अलग होकर उपन्यास जब अपने पूर्व रुप रोमांस से भिन्न एक स्वतंत्र कला रुप के तौर पर स्थिर होता है तो उसका प्रधान उपजीव्य समाज की विधि विषमताये और समस्यायें ही बनती है। हिनदी का प्रथम मौलिक उपन्यास लाल श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा गुरु’ (1882) सांस्कृतिक और जातिय संघर्ष की कथावस्तु को उठाता है। उपन्यास जब हिन्दी साहित्य परिवार में नया-नया प्रवेश कर रहा था तो सतर्क गृहस्थ की भाँति वरिष्ठ लेखक और सम्पादकों की उस पर कड़ी निगाह थी। उन्नसवीं सदी के अन्तिम और बीसवीं सदी के आरम्भिक दशकों में उपन्यास की नयी विधा ने हिन्दी लेखकों को अपनी तरफ आकृष्ट किया। आधुनिकता बोध के आधार पर प्रेमचन्दोŸार उपन्यासों का वर्ग विशेष निश्चित करना भी पूर्णतः निर्दोष नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि ‘आधुनिकता का बोध’ स्वयं में एक जटिल अवधारणा है। प्रगतिशील और मूल्यवादी विचारक इसे मानवता के भविष्य निर्माण के संघर्ष में बाधाक मानते ळें उनके अनुसार आस्तित्ववादी दर्शन से

आज और कल ,मस्ती हर पल

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ये हैं लाल बिहारी । पेशे से ठेला चलते हैं , और जिंदगी की ऊर्जा की मिशाल . समस्याओं  से बेपरवाह और उम्र को मात देते हुए सत्तर वर्ष के जवान । जिन्दादिली ,मस्ती और बेपरवाही से भरपूर । सच तो यह है कि कोई भी अपने आने वाले कल के बारे में जानता ही नहीं फिर भी अपना समूचा अस्तित्व उसी कल को संवारने में लगा रहता है । हमेशा अपने आज में जीने की प्रेरणा देने वाले लाल बिहारी जी ने Age is just number वाली उक्ति अपने जीवन्तता से सबित कर रखा है। दिन भर काम में मस्त और सूर्य के अस्त तो अपने लाल बिहारी जी  मस्त । Think about Real happiness . लाल बिहारी जी का व्यक्तित्व उन लोगों के लिए प्रेरणा है जिन्हें जिंदगी से बहुत शिकायत है , खुद पर भरोसा इतना की कुछ भी कर गुजरते हैं .

केवल काका हर शहर ,हर कस्बे और सबके बचपन में होंगे।

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केवल काका ,जिन्होंने बचपन से लेकर अब तक के हमारे जीवन में बचपना का समान देकर असीम खुशी का संचार करते रहे। कभी मसलपट्टी ,तो कभी आरेन्ज बर्फ,तो कभी गाजर ,खीरा और अब मूंगफली । बदलाव तो इन्हें छूकर भी नहीं गया,ठीक वैसी ही जिन्दादिली और उत्साह। जमाने  में बहुत कुछ बदला लेकिन आज केवल काका से मिलकर अपना बचपन और बचपने की बहुत सी यादें जीवन्त हो गयीं ।  आप जीयो ऐसे ही जिन्दादिली से,जिसने बच्चों की खुशी को बढाया और आज उन्हें देखकर मन विह्वल हो गया । उम्र पर बचपना हावी हो गया । कुछ जवानी के किस्से और.......बातें बहुत सी।