Posts

सहजता और सम्पूर्णता के संत: रैदास( डॉ.अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव)

Image
भारतीय समाज में आध्यामिकता और भक्ति की चेतना का प्रवाह अनादि काल से चला आ रहा है । भारतीय  समाज का शायद ही कोई ऐसा वर्ग या समुदाय जिसमें आध्यात्म और भक्ति की चेतना देखने को ना मिलती हो । विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में प्रमुख और जीवन्त भारतीय संस्कृति प्रारम्भ से दो अवधारणाओं का अस्तित्व निरंतर बना रहा है । एक भौतिकवादी है जो जड़ पदार्थ से सृष्टि की उत्पत्ति मानती है और दूसरी धारा यह मानती है कि ज्ञान या चेतना पहले पैदा हुआ । इसका मूल वेदों में देखने को मिलता है । हमारे देश की संस्कृति में आध्यात्मिकता का विशेष प्रभाव देखने को मिलता है । भारत में यह चेतना अनादि काल से समाज को पुनर्नावित करने की दिशा में प्रयास करती रही है । इसी पुनर्नवन की परम्परा में भारत के सभी वर्गों के लोगों ने अपने-अपने ढंग से समाज के जागरण में अपनी-अपनी महती भूमिका का निर्वहन किया है । भारतीय समाज की ऐसी संचरना है कि समाज के सभी वर्गों के लोगों ने अपने-अपने ढंग से अपनी-अपनी मान्यताओं को जाना एवं माना है । हमारे यहाँ जितने मत-मतान्तर देखने को मिलते हैं , उतने शायद ही दुनिया के किसी भू-भाग पर देखने को मिलते हों ।

काव्य दोष

    काव्य में दोष की अवधारणा अत्यन्त प्राचीन है। काव्य का दोष रहित होना आवश्य माना गया है। आचार्य मम्मट' ने काव्य की परिभाषा करते हुए 'तददोषो' पहले  ही कहा है .काव्य-दोषों के सम्बन्ध में 'वामन' ने बहुत स्पष्ट कहा है कि जिन तत्वों से काव्य-सौन्दर्य की हानि होती है, उन्हें दोष समझना चाहिए। आचार्य 'मम्मट' के अनुसार जिससे मुख्य अर्थ अपकर्ष हो, उसे दोष कहते है। मुख्य अर्थ है- 'रस' .इसलिए जिससे रस का अपकर्ष हो,वही दोष है। हिन्दी में चिन्तामणि ,कुलपति मिश्र, सूरति मिश्र, श्रीपति, सोमनाथ, भिखारीक आदि आचार्यों ने काव्य-दोषों पर विचार किया है। इनमें अधिकांश का आधार 'मम्मट' का 'काव्य-प्रकाश' है। आचार्य मम्मट ने दोषों के मुख्य रूप से तीन भेद किये हैं - 1. शब्द दोष  2. अर्थ दोष  3. रस दोष       1. शब्द दोष - शब्द दोष के अंतर्गत शब्दांश ,शब्द और वाक्य तीनों की गणना की जाती है .     श्रुति- कटुत्व दोष :- जहाँ सुनने में कठोर लगने वाले शब्दों का अधिक प्रयोग किया जाता है ,वहाँ श्रुति-कटुत्व दोष माना जाता है .       उदहारण -' पर क्या न विषयोत्कृष्टत

पुल पार करने से :नरेश सक्सेना

  पुल पार करने से पुल पार होता है नदी पार नहीं होती नदी पार नहीं होती नदी में धँसे बिना नदी में धँसे बिना पुल का अर्थ भी समझ में नहीं आता नदी में धँसे बिना पुल पार करने से पुल पार नहीं होता सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है कुछ भी नहीं होता पार नदी में धँसे बिना न पुल पार होता है न नदी पार होती है। (नरेश सक्सेना)

वर्तनी विचार

हिन्दी लिखने वाले अक़्सर  *'ई' और 'यी' में,*   *'ए' और 'ये' में*  और  *'एँ' और 'यें'* में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं...। कहाँ क्या इस्तेमाल होगा❓इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...। 🔸 *जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं...*  जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...। 🔹इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है...  इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...।  इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...।  'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है...  मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...। क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...? ( 'मिलाई' ग़लत है...।) आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...। ( 'जताई' ग़लत है...।)  उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...। ('पाई' ग़लत है)  *अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...।*  बच्चों ने

Tragedy (Aristotle)त्रासदी (अरस्तू)

  Tragedy (Aristotle)   त्रासदी ( अरस्तू ) - पश्चात्य साहित्य चिन्तन काव्य के अनुकरण का सिद्धांत अपने आरंभिक समय से ही मान्य रहा है ,पाश्चात्य साहित्य में प्लेटो और अरस्तू दोनों ने अनुकरण पर विचार करते हुए काव्य को अनुकरण माना है । अरस्तू के अनुसार कविता एक अनुकरणात्मक कला है । अरस्तू ने काव्य पर विचार करते हुए लिखा है कि- काव्य में दो प्रकार के कार्य-व्यापर का अनुकरण होता है, सदाचारियों के अच्छे कार्य-कलापों का तथा दुराचारियों के दुष्कृत्यों का । सदाचारियों के कार्य व्यापारों के अनुकरण से महाकाव्य का जन्म हुआ और दुराचारियों के कार्य-व्यापारों के अनुकरण से व्यंग्य काव्य का । गंभीर स्वाभाव के काव्यकार सदाचारियों के कार्यों का अनुकरण करने में तथा देवी-देवताओं के स्तोत्रों के निर्माण में संलग्न हुए । तुच्छ कोटि के रचनाकारों ने व्यंग्य रचनाओं की । इन्हीं दो प्रकार की काव्य-रचानाओं के रूपांतर और विकास का प्रतिफल है – त्रासदी (Tragedy)   और कामादी ( Comedy) । अरस्तू ने महाकाव्य और त्रासदी में त्रासदी को महाकाव्य से श्रेष्ठ माना है, क्योंकि त्रासदी अपनी सघनता ,संक्षिप्तता,सुसंबन

वर्तनी विचार (शुद्ध -अशुद्ध )

  अशुद्ध    —    शुद्ध अतिथी – अतिथि अतिश्योक्ति – अतिशयोक्ति अमावश्या – अमावस्या अनुगृह – अनुग्रह अन्तर्ध्यान – अन्तर्धान अन्ताक्षरी – अन्त्याक्षरी अनूजा – अनुजा अन्धेरा – अँधेरा अनेकोँ – अनेक अनाधिकार – अनधिकार अधिशाषी – अधिशासी अन्तरगत – अन्तर्गत अलोकित – अलौकिक अगम – अगम्य अहार – आहार अजीविका – आजीविका अहिल्या – अहल्या अपरान्ह – अपराह्न अत्याधिक – अत्यधिक अभिशापित – अभिशप्त अंतेष्टि – अंत्येष्टि अकस्मात – अकस्मात् अर्थात – अर्थात् अनूपम – अनुपम अंतर्रात्मा – अंतरात्मा अन्विती – अन्विति अध्यावसाय – अध्यवसाय आभ्यंतर – अभ्यंतर अन्वीष्ट – अन्विष्ट आखर – अक्षर आवाहन – आह्वान आयू – आयु आदेस – आदेश अभ्यारण्य – अभयारण्य अनुग्रहीत – अनुगृहीत अहोरात्रि – अहोरात्र अक्षुण्य – अक्षुण्ण अनुसूया – अनुसूर्या अक्षोहिणी – अक्षौहिणी अँकुर – अंकुर आहूति – आहुति आधीन – अधीन आशिर्वाद – आशीर्वाद आद्र – आर्द्र आरोग – आरोग्य आक्रषक – आकर्षक इष्ठ – इष्ट इर्ष्या – ईर्ष्या इस्कूल – स्कूल इतिहासिक – ऐतिहासिक इक्षा – ईक्षा इप्सित – ईप्सित इकठ्ठा – इकट्ठा इन्