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आधा गाँव की भाषा एवं संवेदना

आधा गाँव की कथा को अपने पूरे मित्र को समर्पित करना अपने आप में अधिक व्यंजनापूर्ण है । इस उपन्यास की कथा को कहने के लिए उपन्यासकार ने एक नये तरह की भाषा को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है , इसके साथ-साथ कथा शिल्प के स्तर पर नयापन लाने का कार्य किया है । कथा भाषा और कथा शिल्प को किसी निश्चित ढाँचे में बांधकर नहीं देखा जा सकता है ।कथा भाषा और सामाजिक सरोकारों को रेखांकित करते हुए प्रो. केशरी कुमार ने लिखा है कि - "भाषा यथार्थ का सबसे महत्वपूर्ण रचनात्मक पहलू है ।भाषा नहीं तो यथार्थ नहीं ,भाषा के द्वारा ही हम यथार्थ को जानते मानते पहचानते हैं ।भाषा यथार्थ को एक नाम देती है और इस नाम से ही वह पहचाना जाता है । जिसके पास वस्तु है ,पर नाम नहीं है । भाषा की उपेक्षा यथार्थ की उपेक्षा है ।यथार्थ समाज-जीवन का द्वार है, तो भाषा उससे भीतर बाहर करने का रास्ता है । एक के बिना दूसरे का अर्थ नहीं ।"  कथा भाषा और सामाजिक यथार्थ का अन्योन्याश्रित संबंध है । कथा भाषा की दृष्टि अंचल के यथार्थ को अभिव्यक्त करने वाले उपन्यासों में नए प्रयोग देखने को मिलते हैं ।आधा गाँव में भी नए भाषिक एवं सांस्कृतिक प्

बाणभट्ट की आत्मकथाः भाषिक प्रयोग की नव्यता : डा0 अमरेन्द्र कुमार श्रीवास्तव

                                               बाणभट्ट की आत्मकथाः भाषिक प्रयोग की नव्यता प्राचीन भारतीय  समाज एवं संस्कृति को आधुनिक युगानुरूप व्याख्ययित करने वालों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य को बहुविध समृद्ध किया। निबन्ध, उपन्यास इतिहास लेखन, समीक्षात्मक लेखन के साथ-साथ हिन्दी भाषा को भी आपने समृद्ध किया। द्विवेदी जी भारतीय संस्कृति की विषाल परम्परा को अपने साहित्य के माध्यम से वर्तमान संन्दर्भों में प्रस्तुत कर भारतीय समाज को तेजोदीप्त करने का कार्य किया। भारतीय संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की उदाक्तता सदियों से अपनी उदार रही है। इसी उदारता और ग्रहणषीलता के परिणाम स्वरूप भारतीय संस्कृति विविधताधर्मी होती गयी है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी साहित्य की विषय वस्तु के रूप में भारत की विषाल सांस्कृतिक परम्परा और इतिहास को अपनाया। आपके निबन्धों और उपन्यासों में भारतीयता जीवन्त हो उठी है। आप के उपन्यास आधुनिक युग में जीवन की व्यापकता को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से हिन्दी उपन्यास साहित्य में विषेष महत्वप

राग दरबारी की कथा भाषा और व्यंग्य ’

  व्यंग्यात्मक भाषा की सृजनात्मक प्रस्तुतिः ‘राग दरबारी’ हिन्दी उपन्यास साहित्य में हमारे समाज, जीवन और जीवन स्थितियों का व्यापक चित्र देखने को मिलता है। मानव जीवन निरंतर ¬प्रतिपल बदलता रहता है, इसके कारण उसकी क्रियाएँ-प्रतिक्रियाएँ भी बदलती रहती है। इस प्रकार कह सकते हैं कि  मानव जीवन एक प्रयोगशाला है, जिसमें अनेक प्रकार की भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रियाएँ होती रहती हैं, जिसका प्रभाव हिंदी उपन्यासों पर देखने को मिलता है। उपन्यासों का विषयवस्तु हमारा सामाजिक जीवन होता है, और सामाजिक जीवन में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उपन्यासों के विषयवस्तु, शिल्प, भाषा और संरचना में अंतर देखने को मिलता है। औपन्यासिक भाषा के स्तर पर प्रेमचन्द की सामान्य जन की भाषा को सहज कथा शिल्प में प्रस्तुत करने की जो परम्परा आरम्भ हुई उसे आगे बढ़ाने का कार्य बाद के कथाकारों ने बखूबी किया। कथा साहित्य की भाषा का स्वरूप साहित्यिक भाषा से भिन्न होता है। कथा की भाषा में काव्य, नाटक, निबन्ध और साहित्य की अन्य विधाओं की भाषा का सामंजस्य भी देखने को मिलता है। हिन्दी उपन्यास साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो हिन्दी उपन्यास

प्रयोगवादी कवि अज्ञेय

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 अज्ञेय और उनका रचना संसार ना जाने कितना नयापन अपने भीतर समेटे हुए है , भाव और शिल्प के स्तर पर जो कुछ नयापन आधुनिक हिन्दी साहित्य में देखने को मिलाता है उसका उत्स अज्ञेय के रचना लोक में हम देख सकते हैं . प्रयोगवाद के प्रवर्तक के रूप में अज्ञेय का महत्व सर्व विदित है ,लेकिन उनकी कविताओं में एक खास चेतना देखने को मिलाती है . रचना के विषय वस्तु से लेकर शिल्प और दर्शन सभी स्तरों पर अभिनव दृष्टि अज्ञेय को एक विशिष्ट कवि एवं शिल्पी के रूप में प्रतिष्ठित करती है . उनकी कविता कलगी बाजरे की  की निम्नलिखित पंक्तियाँ  उनके भावबोध की परिचायक हैं - अगर मैं तुम को ललाती सांझ के नभ की अकेली तारिका अब नहीं कहता, या शरद के भोर की नीहार – न्हायी कुंई, टटकी कली चम्पे की, वगैरह, तो नहीं कारण कि मेरा हृदय उथला या कि सूना है या कि मेरा प्यार मैला है।   बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गये हैं। देवता इन प्रतीकों के कर गये हैं कूच।   कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है। उपरोक्त पंक्तियों में लोक में प्रचलित प्रतिमानों का प्रयोग करके अपनी लोक प्रखर  चेतना को जीवन्त किया है। बासन ,कलगी ,बाजरा टटकी ,कली

कहानी का पाठ विश्लेषण

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     कहानी लिखना और पढ़ना दोनों कला है , कथा साहित्य के संदर्भ में लेखन के साथ साथ पठान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है . इस विडियो के माध्यम से कहानी के पाठ और उसके विश्लेषण के बारे में चर्चा की गयी है . कहानी के पाठन में कहानी की विषय -वस्तु , शीर्षक , संवाद , पात्र योजना के साथ-साथ भाषा शैली और सामाजिक परिवेश का अध्ययन किया जाता है . विषय- वस्तु के अनुरूप शीर्षक का चयन करना चाहिए . शीर्षक ऐसा होना चाहिए कि वह हमें कहानी पढने के लिए प्रेरित करे और कथा से परिचित कराये .     विषय-वस्तु और शीर्षक के बाद कहानी के पात्र और संवाद अत्यंत महत्वपूर्ण हैं . संवाद कहानी के सम्प्रेषण और पाठन को प्रभावी बनाते हैं .

बाणभट्ट की आत्मकथाः भाषा एवं ऐतिहासिकता

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 बाणभट्ट की आत्मकथाः भाषिक प्रयोग की नव्यता प्राचीन भारतीय  समाज एवं संस्कृति को आधुनिक युगानुरूप व्याख्ययित करने वालों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य को बहुविध समृद्ध किया। निबन्ध, उपन्यास इतिहास लेखन, समीक्षात्मक लेखन के साथ-साथ हिन्दी भाषा को भी आपने समृद्ध किया। द्विवेदी जी भारतीय संस्कृति की विषाल परम्परा को अपने साहित्य के माध्यम से वर्तमान संन्दर्भों में प्रस्तुत कर भारतीय समाज को तेजोदीप्त करने का कार्य किया। भारतीय संस्कार, संस्कृति और सभ्यता की उदाक्तता सदियों से अपनी उदार रही है। इसी उदारता और ग्रहणषीलता के परिणाम स्वरूप भारतीय संस्कृति विविधताधर्मी होती गयी है। हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अपनी साहित्य की विषय वस्तु के रूप में भारत की विषाल सांस्कृतिक परम्परा और इतिहास को अपनाया। आपके निबन्धों और उपन्यासों में भारतीयता जीवन्त हो उठी है। आप के उपन्यास आधुनिक युग में जीवन की व्यापकता को अभिव्यक्त करने की दृष्टि से हिन्दी उपन्यास साहित्य में विषेष महत्वपूर्ण हैं। सामाजिक, ऐतिहासिक, मनोवैज्ञानिक और आ

कहानी कला

       कहानी लेखन और कहानी का वाचन दोनों महत्वपूर्ण है . हम समाज में रहते हुए विविध मनःस्थितियों से गुजरते हैं , इन सबका प्रभाव हमारे मन के साथ साथ हमारे जीवन पर भी पड़ता है . अपनी विविध मनोदशाओं को कुछ लोग शब्दों में पिरो कर कविता ,कहानी , उपन्यास और अन्य विधाओं के माध्यम से लोगों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं , कुछ लोग इस कला में बहुत ही कुशल होते हैं तो कुछ लोग उन्हीं भावों को अभिव्यक्त कर सकने में सक्षम नहीं होते .      आइये हम जानते हैं कि वो कौन से तत्व हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए हमें लेखन कि दिशा में आगे बढ़ सकते हैं - 1- अपने आस-पास के समाज को हमें बहुत ही ध्यान से देखने और जानने की कोशिश करनी चाहिए .  2- प्रसिद्ध कहानियों का अध्यनन एवं उसके रचनाकार के जीवन के बारे में हमें जानना चाहिए . 3- रचनाकारों का संस्मरण और उनकी जीवनी का गहनता से अध्ययन करना चाहिए .  4- भाषा के प्रति उदार दृष्टि रखते हुए ज्यादे से ज्यादे  भाषा का ज्ञान रखना चाहिए . 5- सहज भाषा और भाव हमरे मन में हमेशा होने चाहिए और लोगों से मिलकर उनकी जीवन परिस्थितयों को जानने की चेष्टा करनी चाहिए . 6- रचना प्रक्रिया का व