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यथार्थ का नया दौर और चुनौतियाँ

कथा साहित्य अपने आरम्भ से मध्यगत रुप में सामाजिक यथार्थ चित्रण से जुड़ा हुआ है। प्रायः हर साहित्य में तिलस्मी, ऐय्यारी, रहस्य और चमत्कार प्रधान किस्सो से अलग होकर उपन्यास जब अपने पूर्व रुप रोमांस से भिन्न एक स्वतंत्र कला रुप के तौर पर स्थिर होता है तो उसका प्रधान उपजीव्य समाज की विधि विषमताये और समस्यायें ही बनती है। हिनदी का प्रथम मौलिक उपन्यास लाल श्रीनिवास दास का ‘परीक्षा गुरु’ (1882) सांस्कृतिक और जातिय संघर्ष की कथावस्तु को उठाता है। उपन्यास जब हिन्दी साहित्य परिवार में नया-नया प्रवेश कर रहा था तो सतर्क गृहस्थ की भाँति वरिष्ठ लेखक और सम्पादकों की उस पर कड़ी निगाह थी। उन्नसवीं सदी के अन्तिम और बीसवीं सदी के आरम्भिक दशकों में उपन्यास की नयी विधा ने हिन्दी लेखकों को अपनी तरफ आकृष्ट किया। आधुनिकता बोध के आधार पर प्रेमचन्दोŸार उपन्यासों का वर्ग विशेष निश्चित करना भी पूर्णतः निर्दोष नहीं हो सकता। इसका कारण यह है कि ‘आधुनिकता का बोध’ स्वयं में एक जटिल अवधारणा है। प्रगतिशील और मूल्यवादी विचारक इसे मानवता के भविष्य निर्माण के संघर्ष में बाधाक मानते ळें उनके अनुसार आस्तित्ववादी दर्शन से

आज और कल ,मस्ती हर पल

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ये हैं लाल बिहारी । पेशे से ठेला चलते हैं , और जिंदगी की ऊर्जा की मिशाल . समस्याओं  से बेपरवाह और उम्र को मात देते हुए सत्तर वर्ष के जवान । जिन्दादिली ,मस्ती और बेपरवाही से भरपूर । सच तो यह है कि कोई भी अपने आने वाले कल के बारे में जानता ही नहीं फिर भी अपना समूचा अस्तित्व उसी कल को संवारने में लगा रहता है । हमेशा अपने आज में जीने की प्रेरणा देने वाले लाल बिहारी जी ने Age is just number वाली उक्ति अपने जीवन्तता से सबित कर रखा है। दिन भर काम में मस्त और सूर्य के अस्त तो अपने लाल बिहारी जी  मस्त । Think about Real happiness . लाल बिहारी जी का व्यक्तित्व उन लोगों के लिए प्रेरणा है जिन्हें जिंदगी से बहुत शिकायत है , खुद पर भरोसा इतना की कुछ भी कर गुजरते हैं .

केवल काका हर शहर ,हर कस्बे और सबके बचपन में होंगे।

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केवल काका ,जिन्होंने बचपन से लेकर अब तक के हमारे जीवन में बचपना का समान देकर असीम खुशी का संचार करते रहे। कभी मसलपट्टी ,तो कभी आरेन्ज बर्फ,तो कभी गाजर ,खीरा और अब मूंगफली । बदलाव तो इन्हें छूकर भी नहीं गया,ठीक वैसी ही जिन्दादिली और उत्साह। जमाने  में बहुत कुछ बदला लेकिन आज केवल काका से मिलकर अपना बचपन और बचपने की बहुत सी यादें जीवन्त हो गयीं ।  आप जीयो ऐसे ही जिन्दादिली से,जिसने बच्चों की खुशी को बढाया और आज उन्हें देखकर मन विह्वल हो गया । उम्र पर बचपना हावी हो गया । कुछ जवानी के किस्से और.......बातें बहुत सी।

दार्शनिक एवं मनोवैज्ञानिक भावों का आख्यान-शेखरः एक जीवनी

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शेखर :एक जीवनी की मनोवैज्ञानिकता- बाल मनोविज्ञान , युवावस्था की जिज्ञासा और मनोसंवेग, सामाजिक जीवन का अस्वीकार,  शिल्प विधान - पूर्व दीप्ति शैली, मनोविश्लेषण शैली, एकालाप ,आत्म कथात्मक शैली. भाषा - मनोविश्लेषण परक, काव्यात्मक, संवाद परक और गहन विचारात्मक भाषा. अज्ञेय शब्दों से कम उसकी भंगिमा और बनावट पर ज्यादा जोर देते हैं. हिन्दी कथा साहित्य के इतिहास में जीवन जगत के बाह्य यथार्थ के साथ-साथ मानव मन के अन्तर्जगत के आलोड़न-बिलोड़न को चित्रित करने की प्रक्रिया का आरम्भ जैनेन्द्र ने किया। सामाजिक घटनाओं और परिस्थितियों का प्रभाव हमारे जीवन के साथ ही हमारे मन पर भी पड़ता है। मानव मन की विविध स्थितियों का गहन पड़ताल और उसको साहित्यिक फलक पर उभारने की दृष्टि से हिन्दी के मनोवैज्ञानिक उपन्यासों का विशेष महत्व है। मनोवैज्ञानिक तत्व तो हिन्दी के अधिकांश उपन्यासों में मौजूद है; लेकिन समग्रता मे पात्रों के मन की गहन पड़ताल और उसे औपन्यासिक कथावस्तु के रूप में प्रस्तुत करने की परम्परा का निर्वहन मनोवैज्ञानिक उपन्यासों में देखने को मिलता है। मनुष्य के अन्तर्जगत को चित्रित करने की परम्परा का आरम्भ जैनेन्

मनोहर श्याम जोशी कृत कसप की कथा भाषा

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  हिन्दी उपन्यासों की परम्परा में जिन उपन्यासकारों ने औपचारिक भाषा एवं शिल्प के स्तर पर व्यापक प्रयोग किये हंै, उनमें मनोहर श्याम जोशी का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। मनोहर श्याम जोशी के उपन्यासों में विषय-वस्तु के साथ-साथ शिल्प एवं भाषा सभी स्तरों पर नवाचार देखने को मिलता है। जैनेन्द्र की संवेदना, अज्ञेय की प्रयोगधर्मिता और रेणु जैसी भाषा की आंचलिकता मनोहर श्याम जोशी के उपन्यासों की भाषा में एक नये तरह के कथावातायन का निर्माण करते है। मनोहर श्याम जोशी के उपन्यासों की भाषा में एक नये तरह का ठसक और देशीपन देखने को मिलता है। इनके प्रमुख उपन्यास है- कुरु-कुरु स्वाहा, कसप, हरिया-हरकुलिस की हैरानी और हमजाद। ‘कुरु-कुरु स्वाहा’ से मनोहर श्याम जोशी उपन्यास लेखन की ओर आए। यह एक प्रयोगशील उपन्यास  है। अपने व्यापक प्रयोगशीलता के कारण यह उपन्यास बहुत चर्चित हुआ। अपनी प्रयोगशीलता के कारण रचनाकार उपन्यास के स्वीकृत और उपलब्ध ढाँचें को तोड़कर नये तरह के अंदाज में अपनी कथावस्तु को प्रस्तुत करता है। मनोहर श्याम जोशी अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों मिलाकर अपने कथा साहित्य को एक नये कलेवर में ढाल