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आदणीय सच्चिदानन्द जोशी जी के फेसबुक से सभार।

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आदत के गुलाम: रोज की तरह आज भी जब मैं अपनी साइकिल लेकर कॉलोनी की सड़क का चक्कर लगाने निकला तो मन में खयाल आया  कि क्यों न आज सीधी तरफ से चक्कर लगाया जाए। सीधा यानी क्लॉक वाइस। रोज मैं साइकिल से कॉलोनी की घुमाव दार सड़क के तीन चार चक्कर लगाता हूं। घर से निकलते ही बाईं तरफ को साइकिल मोड़ लेता हूं और फिर बाईं ओर से ही चक्कर लगा लेता हूं यानी एंटी क्लॉक वाइस।मेरा ये बताने का उद्देश्य कतई नहीं कि आप मुझे फिटनेस फ्रीक समझें। फिर भी अगर आप ऐसा समझ लेंगे तो मैं तो ऐसा चाहता ही हूं। आज जब साइकिल दाहिनी ओर मोडी और सड़क पर घूमने लगा तो ऐसा लगने लगा मानो किसी दूसरी जगह आ गया हूं। कॉलोनी वही , रास्ता वही , साइकिल भी वही आने जाने वाले भी ज्यादातर वही और साइकिल चलाने वाला मैं भी वही। लेकिन ऐसा लगा कि किसी नई जगह पर आ गया हूं।। जहां मुझे रोज ढलान मिलती थी वहां चढ़ाई आ गई। जहां चढ़ाई थी वहां साइकिल सरपट दौड़ने लगी। जहां गड्ढे थे वहां सड़क चिकनी थी और जहां सड़क ठीक ठाक थी वहां गड्ढे हो रहे थे। ये भी समझ में आया कि  बाई ओर से घूमने में सभी मोड़ आसान थे और अब हर बार मोड़ने के पहले दो तीन बार पीछे देखना पड

स्वेच्छा

 ♥ *समर्पण का अर्थ है*  ♥ स्वेच्छा से, अपनी मर्जी से, तुम पर कोई दबाव न था, कोई जोर न था, कोई कह नहीं रहा था, कोई तुम्हे किसी तरह से मजबूर नहीं कर रहा था, तुम्हारा प्रेम था, प्रेम में तुम झुके, तो समर्पण, प्रेम में ही समर्पण हो सकता है। और जहाँ प्रेम है, अगर समर्पण न हो तो समझ लेना प्रेम नहीं है। आमतौर से लोग यह कोशिश करते हैं कि प्रेम के नाम पर समर्पण करवाते हैं। तुम्हें मुझसे प्रेम है, करो समर्पण! अगर प्रेम है तो समर्पण होगा ही, करवाने की जरूरत नहीं पडेगी।  बाप कहता है कि मैं तुम्हारा बाप हूँ तुम बेटे हो, मुझे प्रेम करते हो? तो करो समर्पण। पति कहता है पत्नी से कि सुनो, तुम मुझे प्रेम करती हो? तो करो समर्पण। प्रेम है तो समर्पण हो ही गया, करवाने की कोई जरूरत नहीं है। जो समर्पण करवाना पड़े, वह समर्पण ही नही अधिपत्य है। जो हो जाए सरलता से, जो हो जाए सहजता से! वही समर्पण है। प्रेम तभी घटता है जब समर्पण घटे, प्रेम और समर्पण एक दूसरे के पूरक है। प्रेम के बिना कैसा समर्पण! और समर्पण न हो तो कैसा प्रेम.........😍 🌹 _*ओशो*_  🌹 ❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣❣

समर्पण:ओशो

सुना है मैंने कि अकबर यमुना के दर्शन के लिए आया था। यमुना के तट पर जो आदमी उसे दर्शन कराने ले गया था,वह उस तट का बड़ा पुजारी, पुरोहित था। निश्चित ही, गांव के लोगों में सभी को प्रतिस्पर्धा थी कि कौन अकबर को यमुना के तीर्थ का दर्शन कराए। जो भी कराएगा, न मालूम अकबर कितना पुरस्कार उसे देगा! जो आदमी चुना गया, वहधन्यभागी था। और सारे लोगर् ईष्या से भर गए थे। भारी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। अकबर जब दर्शन कर चुका और सारी बात समझ चुका, तो उसने सड़क पर पड़ी हुई एक फूटी कौड़ी उठा कर पुरस्कार दिया उस ब्राह्मण को, जिसने यह सब दर्शन कराया था। उस ब्राह्मण ने सिर से लगाया, मुट्ठी बंद कर ली। कोई देख नहीं पाया। अकबर ने जाना कि फूटी कौड़ी है और उस ब्राह्मण ने जाना कि फूटी कौड़ी है। उसने मुट्ठी बंद कर ली, सिर झुका कर नमस्कार किया, धन्यवाद दिया, आशीर्वाद दिया। सारे गांव में मुसीबत हो गई कि पता नहीं, अकबर क्या भेंट कर गया है। जरूर कोई बहुत बड़ी चीज भेंट कर गया है। और जो भी उस ब्राह्मण से पूछने लगा, उसने कहा कि अकबर ऐसी चीज भेंट कर गया है कि जन्मों-जन्मों तक मेरे घर के लोग खर्च करें, तो भी खर्च न कर पाएंगे। फूटी कौड़ी को ख

ओशो

सुना है मैंने कि अकबर यमुना के दर्शन के लिए आया था। यमुना के तट पर जो आदमी उसे दर्शन कराने ले गया था,वह उस तट का बड़ा पुजारी, पुरोहित था। निश्चित ही, गांव के लोगों में सभी को प्रतिस्पर्धा थी कि कौन अकबर को यमुना के तीर्थ का दर्शन कराए। जो भी कराएगा, न मालूम अकबर कितना पुरस्कार उसे देगा! जो आदमी चुना गया, वहधन्यभागी था। और सारे लोगर् ईष्या से भर गए थे। भारी भीड़ इकट्ठी हो गई थी। अकबर जब दर्शन कर चुका और सारी बात समझ चुका, तो उसने सड़क पर पड़ी हुई एक फूटी कौड़ी उठा कर पुरस्कार दिया उस ब्राह्मण को, जिसने यह सब दर्शन कराया था। उस ब्राह्मण ने सिर से लगाया, मुट्ठी बंद कर ली। कोई देख नहीं पाया। अकबर ने जाना कि फूटी कौड़ी है और उस ब्राह्मण ने जाना कि फूटी कौड़ी है। उसने मुट्ठी बंद कर ली, सिर झुका कर नमस्कार किया, धन्यवाद दिया, आशीर्वाद दिया। सारे गांव में मुसीबत हो गई कि पता नहीं, अकबर क्या भेंट कर गया है। जरूर कोई बहुत बड़ी चीज भेंट कर गया है। और जो भी उस ब्राह्मण से पूछने लगा, उसने कहा कि अकबर ऐसी चीज भेंट कर गया है कि जन्मों-जन्मों तक मेरे घर के लोग खर्च करें, तो भी खर्च न कर पाएंगे। फूटी कौड़ी को ख

ओशो वचन

एक राजा एक रथ से गुजरता था—जंगल का रास्ता, शिकार से लौटता था। राह पर उसने एक गरीब आदमी को, एक भिखारी को एक बड़ी पोटली—बूढ़ा आदमी और बड़ा बोझ लिए हुए चलते देखा। उसे दया आ गयी। उसने रथ रुकवाया और कहा भिखारी को कि तू बैठ जा, कहां तुझे उतरना है हम उतार देंगे। भिखारी बैठ तो गया, डरता, सकुचाता—रथ, राजा! अपनी आंखों पर भरोसा नहीं आता! कहीं छू न जाए राजा को! कहीं रथ पर ज्यादा बोझ न पड़ जाए! ऐसा संकुचित, घबड़ाया, बेचैन—सच में तो डरा हुआ बैठ गया, क्योंकि इनकार कैसे करे? मन तो यह था कि कह दूं कि नहीं—नहीं, मैं और रथ पर! मुझ जैसे गंदे आदमी को, चीथड़े जैसे कपड़े, इस रथ पर बैठाके, शोभा नहीं देती। लेकिन राजा की बात इनकार भी कैसे करो? बुरा न मान जाए, अपमान न हो जाए। तो बैठ तो गया, बड़े डरे—डरे मन से, और पोटली सिर से न उतारी। राजा ने कहा—मेरे भाई! पोटली तेरे सिर पर भारी है इसीलिए तो तुझे मैंने रथ में बिठाया, तू पोटली सिर से नीचे क्यों नहीं उतारना? उसने कहा—आप भी क्या कहते हैं? मैं ही बैठा हूं यही क्या कम है, और पोटली का वजन भी रथ पर डालूं! मुझे बैठा लिया, यही कम सौभाग्य मेरा! नहीं—नहीं, यह मुझसे न हो सकेगा; पोट

शपथपत्र

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प्रमाणित करते हुये घोषणा करता/करती हूँ कि आवेदन पत्र में दिये गये विवरण / तथ्य मेरी व्यक्तिगत जानकारी एवं विश्वास में शुद्ध एवं सत्य हैं। मैने उसमें कुछ भी छुपाया नहीं है। मैं मिथ्या विवरणों / तथ्यों को देने के परिणामों से भली-भाँति अवगत हूँ । यदि आवेदन पत्र में दिये गये कोई विवरण / तथ्य मिथ्या पाये जाते हैं, तो मैं, मेरे विरूद्ध भा0द0वि0, 1960 की धारा-199 व 200 एवं प्रभावी किसी अन्य विधि के अंतर्गत अभियोजन एवं दण्ड के लिये, स्वयं उत्तरदायी होऊँगा / होऊँगी। मैं यह भी घोषणा करता/करती हूँ कि यदि मेरे द्वारा की गई दस्तावेजों का स्व-प्रमाणीकरण या घोषणा गलत पायी जाती है या मेरे द्वारा गलत दस्तावेजो का स्व प्रमाणीकरण किया जाता गया है, तो मेरे द्वारा प्राप्त की गयी सभी प्रकार की सुविधायें तत्काल वापस ले ली जाऐं।

ओशो वचन

 आज्ञा का पालन ?   जिस आदमी ने हिरोशिमा पर ऐटम बम गिराया और एक ऐटम बम के द्वारा एक लाख आदमी दस मिनिट के भीतर राख हो गए, वह वापिस लौट कर सो गया। जब सुबह उससे पत्रकारों ने पूछा कि तुम रात सो सके? उसने कहा, क्यों? खूब गहरी नींद सोया! आज्ञा पूरी कर दी, बात खत्म हो गई। इससे मेरा लेना—देना ही क्या है कि कितने लोग मरे कि नहीं मरे? यह तो जिन्होंने पॉलिसी बनाई, वे जानें; मेरा क्या? मुझे तो कहा गया कि जाओ, बम गिरा दो फलां जगह—मैंने गिरा दिया। काम पूरा हो गया, मैं निश्चित भाव से आ कर सो गया। एक लाख आदमी मर जाएं तुम्हारे हाथ से गिराए बम से, और तुम्हें रात नींद आ जाए— थोड़ा सोचो, मतलब क्या हुआ? एक लाख आदमी! राख हो गए! इनमें से तुम किसी को जानते नहीं, किसी ने तुम्हारा कुछ कभी बिगाड़ा नहीं, तुमसे किसी का कोई झगड़ा नहीं। इनमें छोटे बच्चे थे जो अभी दूध पीते थे, जिन्होंने किसी का कुछ बिगाड़ना भी चाहा हो तो बिगाड़ नहीं सकते थे। इनमें गर्भ में पड़े हुए बच्चे थे, मां के गर्भ में थे, अभी पैदा भी न हुए थे—उन्होंने तो कैसे किसी का क्या बिगाड़ा होगा! एक छोटी बच्ची अपना होमवर्क करने सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर जा रही थी, वह वही