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भारतीय नागरिक के रूप में हमारा दायित्व

  स्वाधीनता के लगभग पचहतर वर्ष होने को हैं ,इतने वर्षों के बाद भी आजादी के मायने और अपेक्षाओं को हम समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुचाने में असमर्थ हैं । शिक्षा ,स्वास्थ ,सुरक्षा और न्याय जैसी व्यवस्था सबको कितनी सर्वसुलभ है, यह प्रश्नों के घेरे में है ।इस स्थिति के लिए हम प्रायः शासन सत्ता और व्यवस्थाओं को दोष देकर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते हैं । किसी भी राष्ट्र के निरंतर उत्थान में वहां के नागरिकों का राष्ट्रिय चरित्र होना एक मूलभूत आवश्यकता है ।आज हमारे देश में राष्ट्रिय और सामाजिक चरित्र का ना होना एक बड़ा कारण है , जिसके कारण समाज का अंतिम व्यक्ति मौलिक सुविधाओं से दूर है । क्या ,हम केवल व्यवस्थापिका और उससे जुड़े लोगों को दोष देकर मुक्त हो सकते हैं ? क्या हम कार्यपालिका और न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को प्रश्नांकित करके मुक्त हो जायेंगे ?- नहीं । समस्या हमारे राष्ट्रिय चरित्र की है । जिसके कारण भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है । अपवादों को छोड़ दें तो लगभग हर व्यक्ति उस हद तक भ्रष्ट है , जिस हद तक वह भ्रष्ट हो सकता है । क्या नागरिक ? क्या नेता ?क्या ब्यूरोक्रेट या व्यस्था से जुड़े अन्य लोग

कथा अनुवाद

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  साहित्य का हमारे समाज और संस्कृति से गहरा जुड़ाव होता है। कथा साहित्य में समाज और संस्कृति का प्रतिबिम्बन हमारे साहित्य में देखने को मिलता है। कथा साहित्य में समाज का व्यापक चित्र. प्रस्तुत करते हुए कथाकार समाज के विविध रीति-रिवाजों और परम्पराओं का भी अंकन सहज ही हो जाता है। कथा-साहित्य का अनुवाद करते हुए अनुवादक को स्रोत भाषा और लक्ष्य दोनों के समाज , संस्कृति और जनता की चित्तवृतियों का विशेष ध्यान रखना होता है। किसी भी रचनाकार के साहित्यिक परम्परा को भलीभांति जाने समझे बिना हम उसकी रचनाओं के मर्म को नही समझ सकते और अगर हम रचना के मर्म को नहीं समझ सकेंगे तो उसका अनुवाद प्रभावी नहीं होगा। कथा साहित्य में व्यापक जीवन की अभिव्यक्ति होती है। इसीलिए कथा साहित्य का अनुवाद अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। समाज , संस्कृति , परिवेश और सामाजिक क्रियाओं- प्रतिक्रियाओं के सूक्ष्म अन्वेषण की आवश्याकता कथा-अनुवाद में होती हैं अनुवादक का उत्तरदायित्व साहित्यकार से अधिक चुनौतीपूर्ण और व्यापक होता है। अनुवाद के लिए भाषाओं का सूक्ष्म अध्ययन तो अपेक्षित है ही साथ ही साथ रचनाकार के रूचि-अभिरूचि का भी ध्यान र

Story of Cute Love in full flow of Heart :प्रेम और भाषा के सहजता की प्रथम कथा (उसने कहा था -1915)

                                                                                          उसने कहा था   हिन्दी  साहित्य के इतिहास में कुछ कहानियाँ ऐसी हैं जिन्हें जितनी बार पढ़ा जाये उसमें ताजगी देखने को मिलती है ।ऐसी ही एक कहानी है "उसने कहा था"। उसने कहा था हिन्दी की आरम्भिक कहानियों में से है ,लेकिन शिल्प और भाषा की दृष्टि से इसका अवलोकन करें तो यह अपने आप में बेजोड़ है । मानवीय संबंधों और संवेदन के अनेकानेक रूपी जगत में आदर्श प्रेम की इस कथा को पढ़कर मन में एक अजीब सा सुकून उत्पन्न होता है । कहानी के आरम्भ में लेखक कहता है कि – बड़े-बड़े शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जुबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है,और कान पक गये हैं , उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बंबुकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें । जब बड़े-बड़े शहरों चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट संबंध स्थापित करते हैं , कभी-कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने तरस खाते हैं .....................तब अमृतसर में उनकी बिरादरीवाले तंग चक्करदार गलियों में हर-एक लद्धि वाले के ल

पथरीला सोना : प्रवासी भारतीयों के इतिहास बोध और पीड़ाबोध का आख्यान

          जो देश अपने सीने पर पत्थरों का बोझ उगाये निस्पंद पड़ा हुआ था ,भारतीयों ने कुदाल से स्पंदित किया और इसके माथे पर लिखा तुम्हें उर्वर होना है । पथरीला सोना वास्तव में वह इतिहास है, जिसे भारतीय मजदूरों  ने भोगा और नए जीवन की आधारशिला रखी । उपन्यास की यात्रा आरम्भ होती है भारत से निकले मजदूरों के प्रवास के आरम्भ से ,जो एक अंतहीन यात्रा में परिवर्तित हो जाती है । पीड़ा,वेदना,आक्रोश और बेबसी का घनीभूत रूप इस उपन्यास में देखने को मिलता है । इस उपन्यास को पढ़ते हुए हम उस यथार्थ से साक्षात्कार कर रहे होते हैं ,जिसे प्रवासी भारतीयों ने भोगा था । इस विषय को लेकर लिखा जाने वाला यह अद्वितीय उपन्यास है , जिसका लेखक स्वयं भोक्ता भी था । उपन्यास की आरम्भिक पंक्तियों में उस मर्म को हम समझ सकते हैं – दर्द से परेशान उस औरत का पेट देखने की आवाज़ हाँकने वाले जहाज के उस कर्मचारी ने जाल ऐसा बनाया कि औरत पेट न दिखाती तो उसे समुद्र में अब तो फेकना ही होगा । औरत ने लहंगा उठा कर अपना पेट दिखाया ! सारी औरतें चीख पड़ीं । रवीचन नाम के युवा ने कहा –औरत ने पेट दिखा दिया । अब तुम्हरा कलेजा ठंडा हुआ तो होग

पथरीला सोना (पहले कुदाल ,फिर कलम )

  प्रवासी जीवन का संघर्ष एवं संवेदना : पथरीला सोना रामदेव धुरंधर जीवन जगत की वास्तविकताओं को यथातथ्य प्रस्तुत वाले विशिष्ट रचनाकार हैं । भारतीय सांस्कृतिक परम्परा के संवाहक के रूप में प्रवासी भारतीयों के योगदान को भूलाना संभव नहीं है ।इसी परम्परा में रामदेव धुरंधर जी ने अपने लेखन के माध्यम से प्रवासी जीवन के यथार्थ और संघर्षों को बखूबी अपने कथा फलक पर उभारा है।आपका रचना संसार व्यापक और विस्तृत है । आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं – उपन्यास – चेहरों वाला आदमी,छोटी मछली –बड़ी मछली, बनते बिगड़ते रिश्ते, विराट गली के बासिंदे, पथरीला सोना । कहानी संग्रह – विष-मंथन, जन्म एक भूल । लघुकथा संग्रह – चेहरे मेरे तुम्हारे ,यात्रा साथ-साथ , एक धरती एक आकाश , आते जाते लोग , मैं और मेरी लघुकथाएं । व्यंग्य संग्रह – कल्जुगी करम-धरम , बंदे आगे भी देख , चेहरों के झमेले , पापी स्वर्ग । इसके अतिरिक्त आपके लेख एवं रचनायें वैश्विक स्त्तर की पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहे हैं । पथरीला सोना आपके द्वारा रचित विशिष्ट उपन्यास है , जिसमें प्रवासी मजदूरों की संघर्ष गाथा को बहुत ही तल्ख़ रूप में उभारा गया ह

How To Learn Hindi (हिन्दी कैसे सीखें )

 Learning is process हिन्दी आज के समय में वैश्विक आवश्यकता बन चुकी है  . ऐसे समय में भाषा शिक्षण और भाषा सीखने की प्रक्रिया सामान्यतः समय की जरुरत है . एक व्यक्ति अपने जीवन काल में छः भाषाएँ सीख सकता है . ऐसे में यह तथ्य हमारे समक्ष आ जाता है कि कोई भी भाषा सीखते समय वो कौन सी बातें हैं जिसे हमें ध्यान रखना चाहिए . भाषा सीखने के लिए निम्नलिखित बातों को विशेष ख्याल रखना चाहिए -     भाषा की वर्णमाला का ज्ञान ( Knowledge  of alphabets )     व्याकरण का ज्ञान ( Knowledge of grammar)      शब्दकोश का ज्ञान ( Knowledge of vocabulary)      भाषा के सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश का ज्ञान  (Knowledge of Social and Cultural Circumstance )     लिपि का ज्ञान ( Knowledge of Script )     भाषा के सीखने की प्रक्रिया मूलतः मानसिक है , यदि हम यह तय कर लेते हैं कि हमें इस भाषा में वाचन और लेखन कौशल हासिल करना है तो हम वह भाषा आसानी से सीख सकते हैं . हिन्दी एक ऐसी भाषा है ,जिसमें वर्णों की संख्या अंग्रेजी की अपेक्षा तो अधिक है ,यकीन अन्य भाषाओँ की अपेक्षा कम है . इसके साथ-साथ हिन्दी भाषा एक वैज्ञानिक भी है .

अभिव्यंजनावाद: बेनेदेतो क्रोचे (Benedetto Croce -25 Feb 1866 to 20 Nov 1952)

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  पाश्चात्य साहित्य चिन्तन के आधुनिक विचारकों में क्रोचे का विशेष महत्व है , इसने साहित्य , कला , इतिहास , और दर्शन जगत को अपने विचारों से प्रभावित किया । प्रख्यात इटालियन दार्शनिक क्रोचे की सर्वाधिक ख्यातिलब्ध रचना फिलोसोफी ऑफ़ स्पिरिट ( Philosophy of the Sprit ) है । जिसके चार खंड हैं –एस्थेटिक्स ,लॉजिक, फिलोसोफी ऑफ़ कंडक्ट, थ्योरी एंड हिस्ट्री ऑफ़ हिस्टोरियोग्राफ़ी ।                1. Aesthetics   ( एस्थैटिक्स)    2.  Logic (लॉजिक)          3.   Philosophy of Conduct (फिलोसोफी ऑफ़ कंडक्ट) 4. Theory and History of Historiography (थ्योरी एंड हिस्ट्री ऑफ़ हिस्टोरीयोग्राफी)   क्रोचे ने साहित्यशास्त्र को बहुचर्चित सिद्धांत दिया, जिसे हम अभिव्यंजनावाद के नाम से जाना जाता है । यह एक ऐसा सिद्धांत है ,जिसने साहित्य के साथ-साथ कला एवं संगीत को भी प्रभावित किया । क्रोचे महान साहित्यशास्त्री और दर्शनशास्त्री था ,जिसने अपने विचारों से जीवन-जगत से जुड़े चिन्तन को व्यापक रूप से प्रभावित किया है । अभिव्यंजनावाद ( Expressionism)   की स्थापना क्रोचे ने अपने बहुचर्चित ग्रन्थ फिलोसोफी ऑफ़ स्पिरिट