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Hindutva is way of living more than a religion

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 (Hindutva is way of living more than a religion) भारतीय चिन्तन परम्परा अत्यंत प्राचीन और आध्यात्मिक जीवन दृष्टि से सम्पन्न एक जीवन पद्धति है, जिसमें समय- समय पर परिवर्धन एवं मार्जन होता रहा है. आज के प्राकृतिक विज्ञान के तर्क कसौटी हमारी बहुत सी आध्यात्मिक परम्परा को पूर्णतः वैज्ञानिक स्वीकार किया गया है. आज वैश्विक स्तर पर अपने- अपने धर्म को लेकर लोगों में मान्यताएँ प्रगाढ़ होती जा रहीं हैं, ऐसे समय में हिन्दू धर्म और भारतीय जीवन दृष्टि की मान्यता और विश्वास पर बात करेंगे.  सबसे पहले हम बात करेंगे भारत में प्रचलित अभिवादन पद्धति का - हमारे यहाँ जब लोग मिलते हैं तो प्रणाम, नमस्कार, नमस्ते, राम- राम, राधे - राधे आदि जैसै शब्दों से अभिनंदन करते हैं. ध्वनि के विश्लेषण के क्रम में इन शब्दों का अध्ययन करें तो यह स्पष्ट होता है कि ये ध्वनि हमारे आस- पास सकारात्मक ऊर्जा की सृष्टि करते हैं . "मेरे भीतर की रोशनी, आपके अन्दर की रोशनी का सत्कार करती है - नमस्ते".(My inner light welcomes your inner light - Namste. )  It is the power of words.   हिन्दू अपने आप में अनेक जीवन पद्धतियों का

रेत उपन्यास में आदिवासी स्त्री संघर्ष: डॉ. विनोद कुमार बी.एम.

  रेत उपन्यास में आदिवासी स्त्री संघर्ष                                                    डॉ. विनोद कुमार बी.एम.                                                                    सहायक प्राध्यापक हिन्दी विभाग , आल्वास कॉलेज , मूडुबिदिरे दक्षिण कन्नड़ कर्नाटक-574227 Vinodmadhav812@gmail.com शोध सारांश-             यह उपन्यास कंजर आदिवासी समाज की महिलाओं की त्रासदी का अनुठा नमुना है। उपन्यास की पृष्ठभूमि हरियाणा और राजस्थान का सीमावर्ती इलाका है। यही पर गाजुकी नदी के किनारे गाजुकी कंजरों की बस्ती है। इसी बस्ती में है कमला सदन इसी घर में खिलावड़ियों का राज है खिलावड़ी अर्थात धंधा करने वाली कुँवारी लड़कियाँ। इस समाज में खुली मान्यता है कुंवारी लड़कियों को वेश्यबृत्ति करने की। इस समाज का पुरूष कोई काम-धंधा नहीं करता है। इस आदिवासी समाज के उपर अपराधी होने का कलंक लगा हुआ है। कंजर बदनाम कौम के रूप में देखी जाती है। इस आदिवासी समाज का लाभ सब उठाना चाहते हैं लेकिन इनके साथ कोई सभ्य समाज का आदमी जुड़ाव रखना नहीं चाहता है। बीज शब्द- समानता, अधिकार, शोषण, सभ्यता-संस्कृति, हाँश

मानक हिन्दी की व्याकरणिक विशेषताओं का उल्लेख करें-

  को ई भी व्याकरण भा षा की प्रकृति को पूर्णत: नियमबद्ध नहीं कर सकता। भाषा की जो प्रकृति वर्तमान में दृष्टि गोचर होती है , व्याकर ण खुद को वहीं तक सीमित रखता है। वह भा विष्य में उस भाषा की प्रकृति में होने वाले परिवर्तन की कोई सूचना नहीं दे सकता । अत: व्याकरण भाषा की प्रकृति का अधुरा परिचय देता है।        भारतीय आर्यभाषाओं से विकसित हिन्दी में ४६ ध्वनियाँ हैं। इनमें ग्यारह स्वर ( अ , आ , इ , ई , उ , ऊ , ए , ऐ , ओ , औ , ऋ) चा ३३ व्यं जन है [क , ख , ग , च , छ , ज , झ ,   ट , ठ , ड , ट , ण , त थ द ध न प फ ब भ म य , र , ल , व , श , ब , स , इ)। इनके अतिरिक्त अनुस्वार और विस र्ग दो व्यं जन और हैं। हिन्दी वर्णमा ला में मित्र व्यंजन क्ष ( क + ष ) , ज्ञ ( ज + उ ) एवं एक संयुक्त व्यं जन त्र (त+र) मिलते हैं। हिन्दी में मूर्धन्य घो ष व्यंजन द वं ह है। अरबी , फारसी मूल से आई हुई है क़ ख़ ज , फ़ ध्वनिया एवं स्वं अंग्रेजी से आई हुई ऑ ध्वनि भी हिन्दी में मिलती है। अत: हिन्दी वर्णमाला में १२ सहायक वर्ण है । न्ह ,   म्ह , एवं ल्हू को भी स्वतंत्र स्वनि य के रूप में परिगणित किया जाता है। इ स दृष